रांची : सेल के ‘अनुसंधान एवं विकास केंद्र’, इस्पात भवन में एक राष्ट्रीय सेमीनार “बायोस 2023”, जो कि आर.डी.सी.आई.एस. के प्रेक्षागृह में सितम्बर 15 – 16 को आयोजित होनी है, एक प्रेस कांफ्रेंस में मीडिया को इस सेमीनार के रूप-रेखा की जानकारी दी गयी| कांफ्रेंस को आर एंड डी, सेल से निर्भीक बनर्जी, कार्यपालक निदेशक (प्रभारी), संदीप कुमार कर, कार्यपालक निदेशक एवं आए.सी.ऐ.आर (आई. आई..ऐ.बी) की ओर से डॉ. सुजोय रक्षित ने संबोधित किया|
सभा के प्रारम्भ में सेल, रांची के संचार प्रमुख उज्जवल भास्कर ने सभी मीडिया बन्धुओं का स्वागत किया| विदित हो कि इस सेमीनार का मार्गदर्शन इस्पात मंत्रालय, भारत सरकार कर रही है तथा इसमें महत्वपूर्ण योगदान आर एंड डी सेल; भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की भारतीय कृषि जैव प्रौद्योगिकी संस्थान, गढ़खटंगा, रांची; आयल इंडिया लिमिटड, भारतीय मानक ब्यूरो, ब्यूरो ऑफ़ एनर्जी एफिशिएंसी तथा जेराडा (झारखण्ड सरकार) टेक्नोलॉजी नॉलेज सोसाइटी के साथ मिलकर कर रही है| इसका उदघाटन नागेन्द्र नाथ सिन्हा, इस्पात सचिव, भारत सरकार के करकमलों द्वारा दिनांक 15 सितम्बर को 11 बजे सुबह होगा| इसमें सेल एवं आयोजक संस्थाओं से शीर्षस्थ अधिकारी भाग लेंगे| तकनीकी सत्रों में भारत के दिग्गज वैज्ञानिक एवं पर्यावंविद शिरकत करेंगे जिसमे सेल, ई.सी.ऐ.आर, आई.आई.टी., आए.आई.एम., जे.एन. यू., कृषि से जुड़े संस्थान, जैव ईंधन के उत्पादक, इनके उपभोगता प्रमुख हैं|
सेल के श्री बनर्जी एवं श्री कर ने बतलाया कि इस्पात संयंत्र वातावरण में कुल ग्रीन हाउस गैसेस के 9% भागीदार हैं जो बहुत ही अधिक है| विश्व में पेरिस समझौते तथा कॉप26 के दवाब को मद्दे नार रखते हुए भारत ने साल 2070 में शून्य कार्बोन उत्सर्जन का लक्ष्य रखा है जिसतक पहुँचने के लिए जैव ईंधन अपरिहार्य है, क्योंकि जैव ईंधन से कार्बन उत्सर्जन बहुत ही कम होता है तथा इसे इस्पात संयंत्रों के धमन भट्ठी में कोक के साथ आंशिक रूप से डाला जा सकता है जिससे धमन भट्ठी की बनावट इत्यादि में कोइ संशोधन की ज़रुरत नहीं होगी और न ही कोई अतिरिक्त लागत व्यय होगी| इसके अतिरिक्त फर्नेस में आयल की जगह भी जैव ईंधन इस्तेमाल हो सकता हैं| डॉ. रक्षित ने बतलाय कि किस प्रकार चावल का पराली जिससे पर्यावरण प्रदूषित होता है उसे हम सही तकनीक द्वारा जैव ईंधन में परिणत कर सकते हैं|
मगर इस सफर में कई कठिन चुनौतियां हैं जिनका मुकाबला देश के सभी वैज्ञानिकों को मिलकर करना होगा| इन चुनौतियों में सर्वप्रथम जैव ईंधन के उष्मीय क्षमता को लगभग दुगुनी करना, इसमें विविधता का मानकीकरण करना, इसके घनत्व को बढ़ाना, इसे संग्रह एवं स्थानान्तरण की व्यवस्था करना इत्यादि हैं| अभी भारत सरकार इसका प्रसंस्करण किसानों के खेतों के निकट ही करने का मंसूबा बना रही है जिसे स्थानीय रोजगार में अभिवृद्धि हो तथा स्थानांतरण का खर्च भी कम लगे|
सेमीनार में बांस की जैव ईंधन रूप विशेष रूप से चर्चा का विषय होगा| G20 में ग्लोबल जैन ईंधन अलायन्स बनने से इस सेमिनार का महत्व और बढ़ गया है| इस सेमीनार के आयोजकों को राष्ट्रीय मानचित्र के प्रमुख हितधारक के रूप में निरंतर प्रयासरत रहना होगा|